राकेश बिहारी शर्मा–शिक्षा सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है। एक देश, एक व्यक्ति, एक समाज का विकास तभी संभव है जब वहां का हर सदस्या शिक्षित होगा। शिक्षा ना केवल व्यक्ति को शिक्षित करती है बल्कि वह उसे उसके अधिकारों एवं कर्तव्यों की ओर भी जाग्रत करती है। साक्षरता किसी भी देश के विकास के लिए बहुत जरूरी है। देश के जितने ज्यादा नागरिक साक्षर होंगे, देश उतनी ही उन्नति कर सकता है। साक्षरता के इसी महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है। विश्व साक्षरता दिवस का मनाने का प्रमुख कारण व्यक्तिगत, सामुदाय और समाज से साक्षरता के महत्व पर प्रकाश डालना! शिक्षा प्रकाश का वह श्रोत है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्ति का सच्चा पथ प्रदशर्न करती है। शिक्षा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास, समाज की उन्नति और सभ्यता की बहुमुखी प्रगति का आधार शिला है। शिक्षा को मनुष्य का तीसरा नेत्र माना जाता है।
निरक्षरता केवल भारत की समस्या नहीं
निरक्षरता केवल भारत की समस्या नहीं, बल्कि विश्व के अनेक देश निरक्षरता से ग्रसित हैं। प्राचीनकाल में भारत में निरक्षरता नहीं थी। पराधीनता के युग में बौद्ध विहार एवं गुरुकुल बंद हो गए। और जन साधारण शिक्षा से दूर होता चला गया। विश्व में निरक्षरता का कलंक मिटाने के लिए यूनेस्को ने विश्व भर में साक्षरता दर बढानें के लिए 7 नवंबर 1965 को अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने का फैसला लिया था। उसके बाद से हर साल 8 सितंबर 1966 से विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाने लगा। हर साल साक्षरता दिवस की एक निर्धारित थीम होती है। इस साल 2022 का थीम ट्रांसफॉर्मिंग लिटरेसी लर्निंग स्पेस है
लार्ड मैकाले ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली को जन्म दिया
लार्ड मैकाले ने अंग्रेजों के शासन को सुदृढ़ करने हेतु वर्तमान शिक्षा प्रणाली को जन्म दिया। इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य कार्यालयों में सरकारी कामकाज के संचालन के लिए बाबू तैयार करना था। इस प्रणाली से देश को हानि तो हुई, परंतु एक बड़ा लाभ यह भी हुआ कि व्यवसाय, नौकरी आदि की प्राप्ति के लालच में शिक्षा का खूब प्रचार हुआ। शिक्षा आम आदमी की पहुँच के लिए दुर्लभ नहीं रही। देश में प्रतिभाशाली नेता भी इसी प्रणाली से तैयार हुए। देश के बाहर विदेशों से भी शिक्षा प्राप्त करने की प्रवृत्ति से देश में जागरूकता बढ़ी। बाबू तो बने ही परंतु कुछ प्रबुद्ध व्यक्ति शिक्षक, प्राध्यापक, चिकित्सक, लेखक, विचारक तथा आर्थिक व्यापारी और प्रशासक भी इसी में से निकले।
स्वतंत्रता सेनानियों ने भी साक्षरता के लिए जागरूकता फैलाया
स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों भी इसी जागरूकता में से उभरे। महात्मा गांधीजी ने शिक्षा को स्वदेशी विचार से तथा व्यवसाय से जोड़ने के लिए बुनियादी शिक्षण पद्धति का विकास किया। जिला-तहसील स्तर तक विद्यालय फैले। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् डॉ. जाकिर हुसैन जैसे सहयोगियों ने इस पद्धति को देशभर में लागू करने का प्रयास किया। सरकार ने शहरी क्षेत्र में शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने वाली समितियों को मान्यता दी। शिक्षा का दायरा बढ़ा, परंतु इतने बड़े देश के लिए यह पर्याप्त नहीं था।
आजादी के बाद भारत सरकार ने भी साक्षरता के लिए जागरूक किया
वर्ष 1977 में देश में जनता पार्टी का शासन आया तो मोरारजी देसाई ने एक प्रौढ़ साक्षरता का विभाग ही खोल दिया। शिक्षा मंत्रालय विद्यालय भी बढ़ा रहा था, परंतु प्रौढ़ों की निरक्षरता से देश की साक्षरता का प्रतिशत लगातार बढ़ नहीं पा रहा था। अतः प्रौढ़ों को साक्षर करने की योजनाएँ चलीं। प्रौढ़ शिक्षा उपनगरों, बस्तियों और गाँवों तक पहुँची। अनेक स्वेच्छिक स्वयंसेवी संस्थाएँ भी इस साक्षरता प्रसार के पावन कार्य में जुट गईं। राष्ट्रीय स्तर के साक्षरता मिशन तथा राज्य स्तर के साक्षरता संसाधन केंद्र खोले गए। उन सबमें विद्यालय के विद्यार्थियों तथा शिक्षकों की सहायता से साक्षरता प्रसार किया गया। गाँवों तथा पिछड़ी बस्तियों में साक्षरता केंद्र स्थापित किए गए। उनके स्वस्थ संचालन हेतु शिक्षक प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की गई। बालकों की शिक्षण पद्धति से भिन्न प्रौढ़ शिक्षण की प्रणाली का विकास हुआ। उनकी पुस्तकें अलग से तैयार की गई।
निरक्षरता सर्वांगीण विकास के मार्ग में बड़ी बाधा
सुचना और संचार के इस युग में अनपढ़ रहना विकास के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है इससे केवल व्यक्ति के विकास पर ही प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है अपितु राष्ट्र के विकास का मार्ग भी अवरूद्ध होता है अज्ञान के अंधेरे मे भटकने वाले निरक्षर न केवल सामाजिक आर्थिक राजनैतिक तथा सांस्कृतिक शोषण के शिकार होते रहे हैं वरन वे जागरूकता के अभाव में अपनी परतंत्रता की जंजीर तोड़ने में असफल रहे हैं। इंसान समाज से पहले अपनी शिक्षा परिवार से प्राप्त करता है और परिवार ही उसका प्रथम शिक्षालय या विद्यालय होता है। उसका प्रथम शिक्षक होती है उसकी माता एवं बाद में पिता। जिस प्रकार प्रथम शिक्षक मां और दूसरा शिक्षक पिता होता है। और इसके बाद अगर प्रथम विद्यालय की श्रेणी दी जायेगी तो वह है परिवार। और सबसे महत्वपूर्ण है परिवार का साक्षर होना। यदि परिवार साक्षर है तो स्वाभाविक है उस परिवार के सदस्यों का विचार भी स्वच्छ एवं आदर्श होगें। अब सवाल यह उठता है, कि इस दिन को कैसे मनाया जाता है। कहीं पर समारोह का आयोजन कर, साक्षरता को लेकर भाषण दिए जाते हैं, तो कहीं गरीब बस्तियों में जाकर शिक्षा का अलख जगाने का प्रयास किया जाता है।
साक्षरता दिवस पर प्रण लें और शिक्षा के प्रचार-प्रसार में भगीदार बनें
आइए इस बार शुरुआत बताने या समझाने से नहीं, समझने से करते हैं। एक नई शुरुआत खुद से करते हैं। साक्षरता दिवस पर एक प्रण करते हैं, उस यज्ञ में आहुति देने का, जो शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए बरसों से किया जा रहा है, लेकिन उसकी ज्वाला उतनी तीव्रता से धधक नहीं पा रही। जरूरी नहीं है, कि इसके लिए हमें कोई बड़े काम से शुरुआत करनी हो। आहुतियां छोटी ही होती है, लेकिन यज्ञ का महत्व और उद्देश्य बड़ा होता है। ठीक वैसे ही हमारी छोटी-छोटी कोशिशें भी कई बार बड़ा आकार लेने में सक्षम होती हैं।