संत बाबा में अलौकिक दैविक शक्ति, वो अपने समय के महान संत थे

राकेश बिहारी शर्मा – बिहारशरीफ़ प्राचीन काल में मगध की राजधानी था। अद्भुत ज्ञान परंपरा का केंद्र बिहारशरीफ, समृद्ध कला, धार्मिक और संस्कृति की झलक तथा ज्ञान की पावन भूमि से दुनिया के लोगों को महापुरुषों द्वारा ज्ञान प्राप्त हुआ है। यहाँ पर भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, बाबा मणिराम, सूफी संत मखदूम बिहारी तथा संत बाबा ने भी उपदेश दिए थे।

तेतर दास उर्फ़ संत बाबा का जन्म और पारिवारिक जीवन – 
तेतर दास उर्फ़ संत बाबा का जन्म बिहार राज्य के नालंदा जिले व बिहारशरीफ प्रखंड के इमादपुर ग्राम में बाबू छेदी गोप जी के घर में हुआ था। हालाँकि, उनके जन्म की तारीख को लेकर विवाद है। इनके माता जी धर्मपरायण महिला थी। सदाचार का पाठ ये अपने माता-पिता से ही सीखे थे। संत बाबा उर्फ़ बाबु तेतर दास जी तीन बहन और एक भाई थे। संत बाबा के पिता जी साधरण किसान थे और बाबा खुद खेती में सहयोग करते और समय मिलने पर भगवत-भजन किया करते थे। बाबा बचपन से ही बेहद बहादुर और ईश्वर के बहुत बड़े भक्त थे। बाबा अपने व्यवहार व लोक-रीति के द्वारा लोगों को जीवन के इस सही तथ्य से अवगत कराते थे।

समाज सेवा, संत सेवा व गौसेवा ईश्वरीय शक्ति व भक्ति है – संत बाबा जनसेवा तथा गौसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गौमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। जब किसी के भाग्य का उदय होता है तो उसका जन्म बिहार की पवित्र भूमि पर होता है, क्योंकि बिहार की भूमि कोई सामान्य भूमि नहीं है। यह धर्म की भूमि है। अध्यात्म की भूमि है। संस्कृति व संस्कार की भूमि है, जहाँ अनेक देवी-देवताओ और साधु संतो ने जन्म लिया है। इसी परम्परा में बिहार के नालंदा जिले के इमादपुर ग्राम में संत तेतर दास उर्फ संत बाबा का जन्म हुआ। ये बाल्यकाल से ही धार्मिक, समाजिक, अध्यात्मिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। ये अपना सम्पूर्ण जीवन असहाय निर्बल व बिहार सहित भारत के सुदूर ग्रामों में रहने वाले दीन-दुखियों के सेवा में लगाया। लोग उनके व्यवहार से बहुत प्रभावित रहते थे। वे सादा-जीवन उच्च विचार के हिमायती थे। महात्मा संत बाबा के जन्म के समय में वातावरण में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशा शोचनीय थी। लोग धर्मांन्धता से परेशान थे। आपसी भाईचारा धर्म का ह्रास हो रहा था। लोगों में भक्ति-भावनाओं का सर्वथा अभाव था। पंडितों के पाखंडपूर्ण वचन समाज में फैले थे। ऐसे संघर्ष के समय में ही, बाबा का प्रार्दुभाव हुआ।

संत बाबा को 12 वर्ष की अवस्था में ज्ञान प्राप्त हुआ –संत बाबा स्वाधीनचेता महापुरुष थे और इनका परिचय, प्राय: इनके जीवनकाल से ही, इन्हें सफल साधक, भक्त, मतप्रवर्तक अथवा समाज सुधारक मानकर दिया जाता रहा है। 12 वर्ष की अवस्था में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था। ज्ञान प्राप्ति के बाद संत बाबा के नाम से जाने जाने लगे। जिस जगह उन्हेंञ ज्ञान प्राप्तव हुआ उसे राजा कुआँ के नाम से जाना जाता है। संत बाबा ने अपना पहला उपदेश राजाकुआँ में किसान, मज़दूर व व्यापारी को दिया। बहुत ही कम समय में संत बाबा अपने कर्म एवं व्यक्तित्व से एक सिद्ध महापुरुष के रूप में प्रसिद्ध हो गए। संत बाबा के दर्शन के लिए प्रतिदिन विशाल जन समूह उमड़ने लगा तथा बाबा के सानिध्य में शांति और आनन्द पाने लगा। बाबा श्रद्धालुओं को योग और साधना के साथ-साथ ज्ञान की बातें बताने लगे। बाबा का जीवन सादा और एकदम संयासी था। बाबा नित्य 4 बजे भोर में ही स्नान आदि से निवृत होकर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाते थे और अपने आसनी पर आसीन होकर श्रद्धालुओं को दर्शन देते और ज्ञानलाभ कराते थे। नकटपुरा ग्रामवासी धरम सिंह यादव के पुत्र नन्दू यादव के घर से संत बाबा के लिए प्रत्येक दिन सात्विक भोजन की व्यवस्था की जाती थी और। बाबा 24 घण्टा में एक ही बार भोजन करते थे। लेकिन भोजन करते हुए किसी ने भी नहीं देखा था। वृद्धावस्था में संत बाबा को नवदीप बाबा अपने हाथ से भोजन कराते थे।

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संत बाबा में अलौकिक दैविक शक्ति, वो अपने समय के महान संत थे – संत बाबा के भक्त आज भी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं और इनके संबंध में बहुत-सी चमत्कारपूर्ण कथाएँ भी सुनी जाती हैं। उनके चमत्कारी व्यक्तित्व को देखकर त्रिकाल दर्शी स्वरुप आभाषित होता था। इनका कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका है। बाबा आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। बाबा को वास्तव में एक सच्चे विश्व-प्रेमी का अनुभव था। बाबा की सबसे बड़ी विशेषता उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी। समाज में बाबा को वर्तमान जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। संत बाबा में अलौकिक दैविक शक्ति था। वो अपने समय के महान संत थे और एक आम व्यक्ति की तरह जीवन को जीने की वरीयता देते है। कई बड़े किसान व व्यापारी और दूसरे समृद्ध लोग उनके बड़े अनुयायी थे लेकिन वो किसी से भी किसी प्रकार का धन या उपहार नहीं स्वीकारते थे। उनके कई भक्त साधारण झोपड़े की जगह बड़ी इमारतें बनाने को कहा। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। श्रद्धालुओं के कथनानुसार संत बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही आसनी के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि आसनी पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी। श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है। लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में क्या चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों से दूर रहते थे। वे अपना फोटो नहीं खिचवाते थे। लेकिन यदि कोई जबरन फोटो खिचता भी तो आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो नहीं बनता था।

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संत बाबा ने जनमानस के लिए उपदेश दिए, सबका मालिक एक है – संत बाबा ने हमेशा लोगों को सिखाया कि अपने पड़ोसियों को बिना भेद-भेदभाव किये प्यार करो। सभी जीवों में ईश्वर का वास है और सभी में ईश्वरीय शक्ति है। उनका मानना था कि, मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है, इसलिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा में लगा दिया। ये भूमि साधु, संतों की भूमि है। ईश्वर एक है हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबका मालिक एक है। मनुष्य तन ईश्वर का दिया हुआ स्वरूप है, इसे व्यर्थ न गवाना चाहिए। इसे अच्छे कर्मों में लगाना चाहिए। त्याग, तपस्या ईश्वर में दो मिनट समय निकालकर भगवान की चरणों में व माता-पिता के चरणों में समर्पित करना चाहिए। यह संस्कार आने वाले पीढ़ी का हमेशा मार्गदर्शन करेगा। गृहस्थ आश्रम में रहकर भी आप संत है। दीन, दुखियों, पीड़ितों, असहायों साथ ही साधु-संतों व माता-पिता का सेवा करना मानव धर्म की पहली पूंजी है। संत बाबा ने हमेशा अपने अनुयायीयों को सिखाया कि कभी धन के लिये लालची मत बनो, धन कभी स्थायी नहीं होता, इसके बजाय आजीविका के लिये कड़ी मेहनत करो और सदाचारी बनों। बाबा कहा करते थे कि लोगों को समाज में बराबरी का अधिकार मिलना चाहिये क्योंकि उनके शरीर में भी दूसरों की तरह खून का रंग लाल और पवित्र आत्मा होती है। उनका मानना था समाज में सभी का स्थान बराबर है, सभी एक ही भगवान के संतान हैं। संत बाबा महान समाज सुधारक थे। वर्तमान समय में इंसानियत, और बाबा की अच्छाई, निर्लोभ और बहुत से कारणों की वजह से बदलते समय के साथ संत बाबा के अनुयायीयों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। बाबा भक्तों के भावनाओं और मनोदशा की जानकारी अपने दैवीय शक्ति से वो पहले ही जान जाते थे और बाबा उनके भावनाओं के अनुसार ही उनका जवाब देते थे। बिहारशरीफ के मीरदाद मोहल्ला के लोकप्रिय जमींदार बशु बाबू का 19 डिसमिल जमीन में “बड़ी बाग” नाम से राजा कुआं के दक्षिणी छोर पर संत बाबा का आश्रम है। आश्रम के विकसित व रमणीक बनाने के लिए बाद में उनके भक्तों ने कुछ और जमीन खरीद कर घेराबंदी कर दिया है। जो आज मनोरम रमणीक आश्रम का रूप ले लिया है। आश्रम में जो बड़ और पीपल का पेड़ है उसे बाबा ने ही लगाया था। उस आश्रम में पतुआना के सेवक डेगन गोप के चौथे पुत्र नवदीप गोप लगातार उनके सेवा में लगे हुए हैं।

मंगलकारी प्रज्ञा पुरूष संत शिरोमणि संत बाबा का निधन – संत शिरोमणि संत बाबा ने 3 अक्तूबर 1999 की रात 11:45 बजे प्राण त्यागे तब से प्रत्येक वर्ष बाबा की समाधि पर मेला, पूजा-पाठ तथा संत प्रवचन होता आ रहा है। बाबा में चमत्कारी शक्ति थी। संत बाबा ने कभी भी किसी से सेवा नहीं लिया। राजा कुआँ गांव के समीप सटे दक्षिणी दिशा में पीपल और बड़ पेड़ के बीच खुले आसमान में या छाते के नीचे वे रहते थे। आश्रम के प्रांगण में एक कुआं है। कुएं का पानी किसी अमृत से कम नहीं है। आज भी पानी का स्तर लगभग 10 से 15 फिट पर ही हैं। चाहे कितनी भी गर्मी पड़े पानी ठंडा व मीठा ही रहता है और पानी का जलस्तर नही घटता हमेशा उतना ही रहता है। ग्रामीणों का ऐसा मानना है कि सांप व बिच्छु काट लेने पर इस कुएं के पानी से स्नान करने व पीने मात्र से ही लोग ठीक हो जाते है। इस दरम्यान हुमाद व अगरबत्ती भी जलाया जाता है। बाबा को रामायण कंठस्थ याद था। 3 अक्तूबर 2002 से लगातार प्रत्येक वर्ष तीन दिनों तक रामायण का पाठ और 48 घंटे तक का रामधुनी यज्ञ होता है। वहां के लोग तीन दिनों तक मीठा भोजन करते हैं। बाबा की समाधि पर जाकर जो लोग सच्चे मन से कुछ मांगता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।

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संत बाबा के करोडों अनुयायी भारत में – संत बाबा जी का आश्रम राजा कुआँ में है। इनके करोडों अनुयायी भारत में हैं। इनके शिष्यों में करोड़ों गरीब एवं साधारण व्यक्तियों के साथ-साथ राजनेता, चिकित्सक, प्रोफेसर, व्यवसायी आदि हैं। संत बाबा के आश्रम राजा कुआँ में हर कोई आ सकता है। इसके लिए कोई रोक-टोक नहीं है। इस मंदिर में कोई प्रवेश शुल्क नहीं है और न ही किसी से किसी किस्म का चन्दा ही मांगा जाता है। अगर किसी की इच्छा कुछ दान देने की हुई तो उसके लिए प्रतिबंध यह है कि अगर वह अण्डा, मांस, मछली, शराब खाता-पिता है तो कृपा करके दान पात्र में रुपये-पैसे न डाले जाते हैं। पुरे भारत के लोग मंदिर में आते हैं, यहां इतनी शांति मिलती है कि यहां से जाने की इच्छा नहीं होती है।

रामलखन सिंह यादव व लालू यादव भी आये थे संत बाबा का दर्शन और आशीर्वाद लेने – संत बाबा एक महान पुरुष थे जिनका राजा कुआँ स्थित पीपल पेड़ समीप समाधि स्थल है। इनकी ख्याति इतनी है की बाबा के शरीर त्यागने के बाद उनको मानने वालों ने समाधि पर मंदिर का निर्माण करा दिया। इस भव्य मंदिर का दर्शन करने के लिए न केवल नालंदा बल्कि राज्य के अन्य जिलों से भी लोग आते हैं। खासकर प्रत्येक रविवार को इस मंदिर में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के कुएं का जल और मिट्टी ले जाने से लोगों को कष्टों से छुटकारा मिलता है। संत बाबा के दर्शन के लिए देश के लोकप्रिय नेता रामलखन सिंह यादव और तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय श्री लालू प्रसाद यादव जी भी पहुंचे थे। संत बाबा मर कर भी आज अमर हैं। संत बाबा में दैविक शक्ति था।

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