Tag: देशभक्ति

  • एशियन रग्बी ताशकंद में जीता सिल्वर मेडल नालंदा की बेटी ने

    नालंदा की बेटी धर्मशिला कुमारी ने अपने बुलंद इरादे एवं परिश्रम की बदौलत इंडियन रग्बी टीम की ओर से देश का प्रतिनिधित्व करते हुए ताशकंद में शानदार प्रदर्शन किया । बताते चलें कि उज्बेकिस्तान के ताशकंद में आयोजित अंडर 20 एशियन रग्बी चैंपियनशिप 2022 में भारतीय महिला टीम की ओर से खेलते हुए सिल्वर मेडल जीतकर जिले सहित राज्य एवं देश का नाम ऊंचा किया । बताते चलें की यह मैच 5 एवम् 6 नवंबर को आयोजित हुआ था । जिसमें बिहार की 3 बेटी धर्मशिला कुमारी ,नालंदा आरती कुमारी नवादा एवं सपना कुमारी मुजफ्फरपुर के खिलाड़ियों ने भारतीय टीम से खेलते हुए सिल्वर पदक प्राप्त कर बिहार एवं भारत का नाम रौशन किया है ।

    उनके इस उपलब्धि पर पूरे नालंदा वासियों को गर्व है। रग्बी खेल को बढ़ावा देने में श्वेता शाही जय सिंह ,सुजीत कुमार शाही ,आदि टीम का बहुत बड़ा योगदान है । धर्मशीला कुमारी इनके प्रेरणा लोगों की बदौलत ही यह मुकाम हासिल की है । धर्मशिला कुमारी जो बड़गांव नालंदा की रहने वाली है ।पूर्व में नेशनल गेम्स में भी गोल्ड मेडल सीनियर टीम एवं अंडर-अट्ठारह टीम ने प्राप्त की थी ।और साथ ही नेशनल गेम्स जो गुजरात में आयोजित हुआ था

    एशियन रग्बी ताशकंद में जीता सिल्वर मेडल नालंदा की बेटी ने

    उसमें भी कांस्य पदक जीत चुकी है । उज़्बेकिस्तान ,ताशकंद से लौटने के बाद धर्मशिला कुमारी काठमांडू नेपाल में आयोजित अंडर 18 रग्बी चैंपियनशिप 2022 में भाग लेने हेतु कैंप जो पुणे में आयोजित है वहां शामिल हो गई है ।नालंदा वासियों को धर्मशिला से भी काफी उम्मीद है काठमांडू से गोल्ड मेडल लाकर नालंदा का नाम फिर से रौशन करेगी। वही नालंदा रग्बी एकेडमी के अध्यक्ष श्री जय सिंह एवम सचिव सुजीत कुमार शाही ने धर्मशिला के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए जीत की बधाई दी है।

  • पत्रकारिता की शुरू गांधी जी की इंग्लैंड में हुई,पत्रकारिता मिशन था गांधी जी का

    वर्ष 1888 में 19 वर्ष की उम्र में, गाँधी वकालत की पढ़ाई के सिलसिले में लंदन गए. इसी दौरान वे ‘लंदन वेजीटेरियन सोसाइटी’ के सदस्य बने. संस्था की पत्रिका ‘द वेजीटेरियन’ के लिए उन्होंने लेख लिखना शुरू किया. उनका पहला लेख ‘इंडियन वेजीटेरियन’ था जो 1891 में प्रकाशित हुआ. पत्रिका में उनके लगभग 12 लेख प्रकाशित हुए. इसमें शाकाहार, भारतीय खान-पान, परंपरा और धार्मिक त्यौहार जैसे विषय शामिल थे. शुरआती लेख से ही तथ्यपरक ढंग से सरल भाषा में विचारों को व्यक्त करने की उनकी कला दिखी. दादा भाई नौरोजी ने 1890 में जब लंदन से ‘इंडिया’ नामक अंग्रेजी पत्र प्रकाशित किया तो उन्होंने गांधी को जोहांसवर्ग, डरबन और दक्षिण अफ्रीका में अपने समाचार पत्र का प्रतिनिधि नियुक्त किया.

    दक्षिण अफ्रीका में हुई घटना ने लिखने के लिए किया मजबूर – 1893 में गाँधी जी वकालत करने दक्षिण अफ्रीका गये. जहाँ लंदन में गाँधी किसी प्रकार के रंगभेद का शिकार नहीं हुए, वहीं दक्षिण अफ्रीका में उनके साथ घटी नस्लभेद की अनेक घटनाओं ने उन्हें प्रेरित किया कि इस पीड़ा की अभिव्यक्ति पत्रकरिता के माध्यम से किया जाए. दक्षिण अफ्रीका पहुंचने के तीसरे दिन ही उन्हें कोर्ट में अपमानित किया गया. कोर्ट परिसर में उनके पगड़ी पहनने पर पाबंदी लगी. अगले ही दिन उन्होंने स्थानीय संपादक को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति जतायी. उनके विरोध के स्वर को अख़बार ने प्रकाशित किया. पहली बार गाँधी जी के लेख को अख़बार में जगह मिली थी. पत्र में उन्होंने लिखा की किसी भी देश में कोई कानून व्यक्तिगत या सांस्कृतिक आज़ादी के खिलाफ नहीं हो सकता. इस घटना से पहली बार दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी चर्चा में आए और अन्याय के प्रति विरोध की अभियक्ति ने उनके अन्दर पत्रकरिता का बिगुल फूका और शुरू हुआ इस क्षेत्र में उनका लंबा सफ़र.|दक्षिण अफ्रीका में 1899 में बोअर युद्ध छिड़ा, जिसने गांधीजी को भारतीय एम्बुलेंस कोर के स्वयंसेवकों के साथ युद्ध के मैदान में जाने और युद्ध को नजदीक से देखने का अनुभव प्रदान किया। इसके बाद उन्होंने युद्ध का अपना अनुभव द टाइम्स ऑफ इंडिया, बॉम्बे को भेजना शुरू किया। युद्ध संवाददाता के तौर पर पूरी मानवीय संवेदना से उन्होंने इस युद्ध की रिपोर्टिंग की.

    दक्षिण अफ्रीका में आम भारतीयों के बारे में काफी अपमानजनक लेख प्रकाशित किए जाते थे. ऐसे में गाँधी जी इस दुष्प्रचार का सामना करने के लिए दक्षिण अफ्रीका के शीर्ष अखबारों में लिखने लगे. इसी कड़ी में 1903 में उन्होंने डरबन में इंडियन ओपिनियन नामक पत्रिका में शुरू की. मुख्य रूप से यह चार भाषओं अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती और तमिल में प्रकाशित होती थी. पत्रिका के पहले अंक में ही गांधी जी ने पत्रकारिता के उद्देश्यों को बताते हुए स्पष्ट किया कि पत्रकारिता का पहला काम जनभावनाओं को समझना और उन्हें अभिव्यक्ति देना है.

    इंडियन ओपिनियन के ज़रिये उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों की परेशानियों का उल्लेख किया. वे अखबार के माध्यम से प्रशासन का इन समस्यायों की ओर ध्यान आकर्षित करने लगे. इस पत्रिका में सिर्फ नस्लभेद के मुद्दे ही नहीं उठाये गये, दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीय समाज को स्वच्छता, आत्मानुशासन और अच्छी नागरिकता के बारे में शिक्षित करने का प्रयास भी किया गया. गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा, ‘इस समाचार पत्र की जरूरत के बारे में हमारे मन में कोई संदेह नहीं है. भारतीय समाज दक्षिण अफ्रीका के राजकीय शरीर का निर्जीव अंग नहीं है. उसे जीवित अंग सिद्ध करने के लिए यह पत्र निकाला गया है.’

    सत्ता के विरोध में मुखर रहने पर साल 1906 में अफ्रीकी प्रशासन ने उन्हें जोहान्सवर्ग की जेल में कैद कर दिया। लेकिन जेल में रहने के बावजूद गांधी जी ने कोई समझौता नहीं किया, बल्कि जेल से ही अख़बार के संपादन का काम किया. अखबार ने कई बार आर्थिक तंगी झेली, लेकिन गाँधी जी ने खुद की आय का बड़ा हिस्सा इसके प्रकाशन में लगाकर इसकी गति धीमी नहीं होने दी. 1893 से लेकर 1914 तक गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में पत्रकरिता के माध्यम से दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के सामाजिक-राजनीतिक अधिकारों की वकालत की, भारतीय समाज को एकजुट किया और विभिन्न समूहों में आपसी सौहार्द स्थापित किया.
    गांधी जी ने पत्रकारिता को लोगों की सेवा के साधन के रूप में देखा। उन्होंने अपनी आत्मकथा में कहा है, ‘इंडियन ओपिनियन के पहले महीने में ही मैंने महसूस किया कि पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य सेवा होना चाहिए. समाचार पत्र एक महान शक्ति है, लेकिन जिस तरह पानी की एक अनियंत्रित धारा पूरे देश को डुबो देती है और फसलों को तबाह कर देती है, उसी तरह एक अनियंत्रित कलम नष्ट करने का ही काम करती है।’ दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुई गाँधी जी की मिशनरी पत्रकारिता ने बाद में भारत में भी उसी बदलाव की मशाल जलाई.

    भारत में जन जागरण के लिए पत्रकारिता बनी सहारा – गाँधी जी के भारत आगमन से पहले भी भारत में अनेक स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजी उपनिवेश के खिलाफ आम जनता को जगाने के लिए पत्रकारिता का प्रयोग कर रहे थे. श्रेत्रीय भाषाओं में अनेक पत्रिकाएं भी यह काम कर रही थीं. इनमें आनंद बाज़ार पत्रिका के शिशिर घोष / मोतीलाल घोष, बालगंगाधर तिलक, रामकृष्ण पिल्लई, सुब्रह्मण्यम अय्यर आदि शामिल थे. भारत में गाँधी जी के आगमन के बाद पत्रिकारिता को नई उर्जा मिली. कह सकते हैं कि 1915 के बाद के कालखंड में गाँधी जी का भारत की पत्रकारिता में ख़ासा प्रभाव रहा.

    अंग्रेजों ने प्रथम विश्व युद्ध में समर्थन के बदले भारतीयों से अस्पष्ट रूप से ‘होम रूल’ वादा किया था, इसके उलट ब्रिटिश सरकार ने 1919 में भारतीय जनता पर कठोर रॉलेट एक्ट थोप दिया। इस बिल ने न केवल तथाकथित ‘देशद्रोही’ दस्तावेज के प्रकाशन, बल्कि उसके कब्जे को भी एक दंडनीय अपराध बना दिया। इसके विरोध में गांधीजी ने 7 अप्रैल 1919 में एक अपंजीकृत साप्ताहिक ‘सत्याग्रह’ शुरू किया और उसके संपादक बने । यह हर सोमवार को प्रकाशित होता था और इसके माध्यम से सत्याग्रह के विचार का प्रचार किया जाने लगा. इसमें देश भर में हो रहे नागरिक अवज्ञा आंदोलन की ख़बरें भी रहती थीं. नागरिक अवज्ञा आंदोलन वापस लिए जाने के बाद उन्होंने यह पत्रिका बंद कर दी. गाँधी जी प्रेस की स्वतंत्रता के पक्षधर थे. उन्होंने कहा था कि प्रेस की स्वतंत्रता एक मूल्यवान विशेषाधिकार है, जिसका त्याग कोई देश नहीं कर सकता. वे पश्चिम की तरह पूर्व में भी समाचार पत्रों को जनता की बाइबिल, कुरान, जेंद-अवेस्ता और गीता के रूप में देख रहे थे. उन्होंने कहा कि समाचार पत्र तथ्यों के अध्ययन के लिए पढ़े जाने चाहिए. अख़बारों को यह अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि वे हमारे स्वतंत्र चिंतन को समाप्त कर दें. प्रेस की आजादी के पर काटने वाले इस दौर में गाँधी जी ने आगे बढ़कर विभिन्न पत्रिकाओं के संपादन की ज़िम्मेदारी ली.

    नवजीवनः गाँधी जी ने 7 सितम्बर 1919 को गुजराती में ‘नवजीवन’ नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया. इस पत्र के संपादन की ज़िम्मेदारी शंकर लाल बैंकर और इंदुलाल याज्ञिक ने उन्हें सौंपी थी. गांधी जी के संपादकत्व में एक आना मूल्य के इस साप्ताहिक पत्र की ग्राहक संख्या देखते ही देखते 1200 तक जा पहुंची थी।

    यंग इंडिया : होम रूल लीग के दो युवा समर्थकों उमर सोबानी और शंकरलाल बैंकर ने अपने साप्ताहिक यंग इंडिया का संपादक बनने की पेशकश भी गाँधी जी को की थी. 8 अक्टूबर को गाँधी जी के संपादन में अहमदाबाद से ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक पत्र के रूप में निकलने लगा. यह पत्र अंग्रेजी भाषा में था. ‘यंग इंडिया’ के पहले संपादकीय लेख में गांधी जी ने जिक्र किया कि देश की 80 % किसान व मजदूर जनसंख्या अंग्रेजी नहीं जानती। फिर यह अंग्रेजी पत्र क्यों? जवाब में गांधी जी खुद कहते हैं कि वे इन मुद्दों को केवल देश के किसानों और मजदूरों तक ही नहीं पहुंचाना चाहते, बल्कि वे शिक्षित भारत के साथ-साथ मद्रास प्रेसीडेंसी के लोगों से भी जुड़ना चाहते हैं और इसके लिए अंग्रेजी जरूरी है। 1922 तक यह पत्र 40,000 की साप्ताहिक बिक्री के आंकड़े तक पहुंच गया। 1919 से 1921 की अवधि में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उछाल के साथ-साथ उनके दो साप्ताहिकों के प्रसार में भारी वृद्धि देखी गई।

    1922 में यंग इंडिया में सरकार की आलोचना करने वाले तीन लेखों के प्रकाशन के बाद, गांधी जी पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। ये दोनों ही पत्रिकाएं अंततः 1932 में बंद कर दी गईं, जब गांधी जी को नमक सत्याग्रह के बाद जेल में डाला गया। यरवडा जेल में रहते हुए 1933 में उन्होंने साप्ताहिक ‘हरिजन’ का प्रकाशन शुरू कर दिया. उन्होंने अंग्रेजी, गुजराती और हिंदी में क्रमशः हरिजन, हरिजन-बंधु, हरिजन-सेवक की शुरुआत की। ये समाचार पत्र ग्रामीण क्षेत्रों में छुआछूत और गरीबी के खिलाफ उनके अस्त्र बने। इनके जरिये उन्होंने भारत में गांव की समृद्धि को राष्ट्रीय से जोड़ा. हरिजन में लम्बे समय तक कोई राजनीतिक लेख नहीं छपा. हरिजन का मुख्य उद्देश्य भारत की सामाजिक कुरीतियों को सामने लाना था. गाँधी जी ने आजादी के विभिन्न आन्दोलनों का ताकतवर प्रचार अपने पत्रों के माध्यम से किया. उन्होंने मीडिया का इस्तेमाल बड़ी ही चतुराई से किया. उनका मानना था कि प्रचार रक्षा का एक प्रमुख हथियार है. भारत छोड़ो आंदोलन से पहले गाँधी जी ने हरिजन को अंग्रेजी और आठ अन्य भारतीय भाषाओं में भी प्रकाशित किया, ताकि आन्दोलन की शुरआत से पहले और उसके दौरान भारतीय जनता तक उनके विचारों की पहुँच सुनिश्चित हो सके.

    मुनाफे के लिए नहीं, सेवा के लिए पत्रकारिता –गाँधी जी ने अपने इन पत्रों में कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया, फिर भी इसका दूर-दूर तक व्यापक प्रसार हुआ। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि अखबार के लिए विज्ञापन लेना पत्रकारिता को बेचने जैसा है। वे मानते थे कि पत्रकारिता का खर्च पाठक संख्या बढ़ाकर निकालना चाहिए. विज्ञापन नहीं प्रकाशित करने की पालिसी के बावजूद गाँधी जी की कोई भी पत्रिका कभी घाटे में नहीं चलती थी.

    आज का मुनाफाखोर कॉर्पोरेट मीडिया जहाँ, जनपक्षधरता का अपना मौलिक कर्तव्य छोड़कर निर्लज्जतापूर्वकजनविरोधी सरकारों के महिमामंडन में लगा रहता है, वहीं इसके विपरीत गाँधी जी ने अपने अखबारों में कभी कोई सनसनीखेज समाचार नहीं चलाया. उनकी पत्रिका में सत्याग्रह, अहिंसा, खानपान, प्राकृतिक चिकित्सा, शिक्षा व्यवस्था, हिंदू-मुस्लिम एकता, छुआछूत मिटाने, सूत कातने, खादी, स्वदेशी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था आदि विषयों पर लेख छपते थे. गांधी जी के लिए पत्रकारिता एक मिशन थी. उन्होंने लिखा था कि मैंने पत्रकारिता को एक मिशन के रूप में लिया है; उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, जिनको मैं जरूरी समझता हूँ और जो सत्याग्रह, अहिंसा व सत्य के अन्वेषण पर टिके हैं।

    गाँधी जी पत्रकारिता के माध्यम से जनता की कमजोरियों और बुराइयों को आत्‍मसुधार और आत्‍मचिंतन के माध्‍यम से दूर करना चाहते थे. जनता में स्‍वचेतना का निर्माण कर व्‍यापक जनमत तैयार करना उनका लक्ष्य था, वे आजादी के मूल्‍य को जीवन का मूल्‍य बनाना चाहते थे। इस कारण वे अपने पत्रों में निरंतर लिखते थे और जनता के विचार भी प्रकाशित करते थे. उन्होंने अपने पत्रों में संपादक को लिखे आलोचनात्मक पत्र भी न केवल छापे, बल्कि धैर्य के साथ उनका उत्तर भी दिया और सुसंगत रूप से अपना दृष्टिकोण सबके सामने रखा। गाँधी जी के बहु-प्रतिभाशाली सचिव महादेव देसाई ने उनकी काफी सहायता की, वे गुजराती और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कुशल थे। गांधी जी के अन्य सहयोगियों स्वामी आनंद, काका कालेलकर, नरहरि पारिख आदि ने भी नवजीवन में योगदान दिया और गुजराती भाषा के अनुवादों को सही आकार दिया।
    वह पत्रकारिता में नैतिक मूल्यों की स्थापना का दौर था.

  • स्वतंत्रता दिवस पर ग्रामीण क्षेत्र में हुई सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता, मिला पुरस्कार !

    स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर सोमवार को अनुमंडल के विष्णुपुर गाँव में एएस पब्लिक स्कूल के मैदान में मेगा सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें सैंकड़ों छात्र छात्राओं ने हिस्सा लिया

    इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित नालंदा के ब्रांड अम्बेसडर डा. आशुतोष कुमार मानव ने कहा कि आज़ादी का जश्न मनाने के साथ साथ इस तरह का आयोजन दूर के ग्रामीण क्षेत्र में होने से न केवल विद्यार्थियों का हौसला बुलंद होता है बल्कि अभिभावको में भी जागृति आती है

    आज़ादी की ७५ वीं वर्षगाँठ पर विद्यालय के निदेशक छोटू कुमार द्वारा आयोजित इस प्रेरक कार्यक्रम से प्रेरणा लेकर बच्चे पढ़ाई पर ज़रूर विशेष ध्यान देंगे और एक दिन देश का नाम भी रौशन कर पाएँगे

    स्वतंत्रता दिवस पर ग्रामीण क्षेत्र में हुई सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता, मिला पुरस्कार !

    युवा छात्र नेता विकाश कुमार, धनंजय कुमार ने कहा कि शहर में तो अक्सर ऐसे कार्यक्रम होते रहते हैं लेकिन गाँव में इस प्रकार का आयोजन होने से छुपी हुई प्रतिभाओं को भी उभरने का मौक़ा मिलता है

    उन्होंने सफल आयोजन के लिए निदेशक की खुलकर सराहना की . इस बीच भाषण, गीत- संगीत, प्रहसन आदि का भी प्रदर्शन बच्चों ने बखूबी किया . सभी विजेता प्रतिभागियों को डा. मानव तथा अन्य ने पुरस्कृत किया तथा उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की

    मौक़े पर निदेशक छोटू कुमार, छात्र नेता धनंजय कुमार, विकाश कुमार समाजसेवी सौरव कुमार, नीरज कुमार, मधुसूदन कुमार,राज किशोर प्रसाद, देवेंद्र प्रसाद, रूपेश पटेल, कमलेश कुमार, सतीश कुमार, राकेश कुमार के अलावे दर्जनों शिक्षाविद उपस्थित थे.

  • स्वतंत्रता दिवस के पूर्व से ही नालंदा जिले में देशभक्ति कार्यक्रमों का आयोजन

    देश की 75वीं आजादी दिवस पूरे भारत में सबसे खास हो गया है। देशभक्ति के रंगो में पूरा भारत रंग चुका है। ठीक स्वतंत्रता दिवस के एक सप्ताह पूर्व से ही नालंदा जिले में देशभक्ति कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसी दौरान शनिवार को पावापुरी स्थित तीर्थकर महावीर विद्या मंदिर स्कूल के प्रांगण में नालंदा सहोदया क्लस्टर के द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव के शुभ अवसर पर एक शाम शहीदों के नाम कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि जगदीश बर्मन ( क्षेत्रीय अधिकारी, सीबीएसई पटना ), सज्जन कुमार (सहायक सचिव, सीबीएसई पटना), अध्यक्ष अरविंद कुमार सिंह, सचिव आशीष रंजन, कोषाध्यक्ष कौशल किशोर, समन्वयक टी टी जोसेफ एवं विरायतन की साध्वी माता द्वारा के द्वारा दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत हुई।

    उसके बाद नालंदा सहोदया क्लस्टर के अध्यक्ष अरविंद कुमार सिंह ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कार्यक्रम में आए सभी गणमान्य अथितियों व स्कूली बच्चों का स्वागत किया। अरविन्द कुमार सिंह ने कहा कि देश पर कुर्बान हो जाने वाले शहीदों के कारण ही हम आज आजादी की खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं। हम सभी का कर्तव्य है कि शहीदों को न भूलें और बच्चों व युवाओं को उनके जीवन से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित करें।

    और फिर एक शाम शहीदों के नाम कार्यक्रम को अपनी सुरीली आवाज से “भारत का रहने वाला हूं भारत की बात सुनाता हूं” गाने से कार्यक्रम को आगे बढ़ाया उसके बाद कार्यक्रम में जिले भर के स्कूलों के छात्र छात्राओं ने देशभक्ति भरी गीत, संगीत नृत्य व नाटक की प्रस्तुति कर हमारे देश के आज़ादी में अहम भूमिका निभाने वाले वीर शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित किया।

    जिसमें जिले के नालंदा विद्या मंदिर स्कूल, साबरमती ज्ञान निकेतन, संत जोसेफ एकेडमी, जेपी इंटरनेशनल स्कूल, आरपीएस स्कूल कचहरी, सीता सरण मेमोरियल स्कूल, मदर टेरेसा हाई स्कूल, सदर आलम मेमोरियल स्कूल, विद्या ज्योति स्कूल, संत पॉल इंग्लिश स्कूल, तीर्थकर महावीर विद्या मंदिर, आरपीएस मकनपुर, संत मैरी स्कूल, डैफोडिल पब्लिक स्कूल, मानस भूमि सीनियर सेकेंडरी स्कूल, कैंब्रिज स्कूल, विकास इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल, रोज़मेरी लैंड स्कूल के बच्चो ने अपना बेहतरीन प्रदर्शन कर कार्यक्रम में आए अथितियो को देशभक्ति के रंगो में रंग दिया।कार्यक्रम में पटना व दिल्ली के कई जाने माने किताबों के प्रकाशक भी शामिल हुए साथ ही जिले भर के स्कूलों के निर्देशक, प्राचार्य, शिक्षक, अभिभावक व छात्र छात्राएं शामिल हुए।

  •  हर घर तिरंगा कार्यक्रम को लेकर निकाली गई प्रभात फेरी।

    आज आज दिनांक 13 अगस्त 2022 को प्रातः 7:30 बजे पूर्वाहन में नेहरू युवा केंद्र नालंदा , एन सी सी कैडेट, राष्ट्रीय सेवा योजना किसान कॉलेज के संयुक्त तत्वाधान में आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर हर घर तिरंगा जागरूकता प्रभातफेरी का आयोजन किसान कॉलेज के प्रांगण से किया गया। डॉ अशोक कुमार प्राचार्य ने प्रभात फेरी को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। कार्यक्रम का नेतृत्व डॉ अनुज कुमार सिंह नोडल अधिकारी राष्ट्रीय सेवा योजना, लेफ्टिनेंट अनुज कुमार, डॉ संजय कुमार, एपीएस शिवनारायण दास ने संयुक्त रूप से किया। हर घर तिरंगा यात्रा किसान कॉलेज से प्रारंभ होकर हॉस्पिटल मोड़ से होते हुए शहर के विभिन्न मोहल्लों से गुजरते जिला समाहरणालय होते हुए कॉलेज में समाप्त किया गया।

    इस अवसर पर प्राचार्य ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में महाविद्यालय के प्रांगण में समाप्त किया गया। इस अवसर पर प्राचार्य डॉ अशोक कुमार ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में महाविद्यालय के प्रांगण में ऐसे कार्यक्रम होना सौभाग्य की बात है, स्वतंत्रता सेनानी राजगुरु, सुखदेव, लाला लाजपत राय, राम प्रसाद बिस्मिल, अस्पाक उल्ला खान ने बढ़ चढ़कर देश को आजाद कराने में काफी योगदान रहा ।गांधी जी के आने के पहले इन स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध काम करने पर इन्हें उग्रवादी बताया जाता था जो कि हम भारतीयों के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी हैं अमृत महोत्सव के उपलक्ष में तमाम स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हुए उनका त्याग और बलिदान का याद करने का मौका है आशा करता हूं कि नई पौध की युवा पीढ़ी राष्ट्र के लिए तन मन धन से अपने को समर्पित करेंगे।

    ए पी एस शिव नारायण दास ने कहा कि 13 अगस्त से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा कार्यक्रम के तहत नेहरू युवा केंद्र नालंदा के कार्यालय में झंडा तोलन कर सभी युवाओं के बीच एक एक तिरंगा देकर अधिक से अधिक लोगों के बीच तिरंगा फहराने का आवाह्न किया गया और स्वतंत्रता सेनानियों के याद कर,बाबा भीमराव अंबेडकर के द्वारा दिया गया संविधान के का पालन करने का भी शपत दिलाया गया। इस अवसर पर नेहरू युवा केंद्र नालंदा के जिला युवा अधिकारी सुश्री पिंकी गिरी, राधेश्याम प्रसाद, राष्ट्रीय युवा स्वयंसेवक पिंटू कुमार, विकाश वर्मा , पंकज कुमार, धर्मेंद्र कुमार ,राजीव कुमार, रिचा कुमारी, ज्योति कुमारी, सोनी कुमारी, गौतम कुमार ,पंकज कुमार, अमन कुमार, विकास कुमार, सुजीत कुमार उपस्थित रहें l