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  • श्रद्धा पूर्वक मनाई गई संत शिरोमणि प्रभु राम जी महाराज की पुण्यतिथि

    बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी स्थित रामसागर राम के आवास पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में स्वतंत्रता सेनानी व लोकप्रिय आयुर्वेदाचार्य प्रकांड रामायणी संत शिरोमणि प्रभु राम जी की तृतीय पुण्यतिथि हर्सोल्लास के साथ शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में साहित्यकारों, कवियों एवं समाजसेवियों ने स्व. प्रभु राम जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर श्रद्धा भाव से मनाई गई। कार्यक्रम का संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया।

    कार्यक्रम में संगीतकार रामसागर राम, लक्ष्मीचंद्र आर्य एवं सुभाषचंद्र पासवान ने दिल को छू लेने वाले भजन- सब दिन होत न एक समाना एक दिन राजा हरिश्चन्द्र गृह कंचन भरे खजाना एक दिन भरे डोम घर पानी मरघट गहे निशाना सब दिन होत न एक समाना…,क्या तू लेकर जायेगा…, करीं हम कवन बहाना…, हर बात को तुम भूलो भले मगर माँ बाप को मत भूलना… सहित कई सुमधुर भजन-निर्गुण सुनाया।

    मौके पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने बताया कि श्री संत शिरोमणि प्रभु राम जी बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी के शिक्षाविद् नाटककार रामसागर राम जी के पिता थे। ये पटना जिला के महाने नदी के तट पर स्थित बराह फतेहपुर में तपस्वी बाबा मठ के महंथ थे। स्वर्गीय प्रभु राम जी संत परम्परा के महान तपस्वी संत थे और ऋषि-कृषि व गौ सेवा तथा संत सेवा को ही अपना धर्म मानते थे।

    हमेशा मानव सेवा एवं संतों की सेवा में लगे रहते तथा आश्रम में जो भी व्यक्ति श्री प्रभु राम जी के सम्मुख आया वह खाली हाथ नहीं लौटा उसकी इच्छाओं की पूर्ति श्री प्रभु महाराज जी ने की। उन्होंने बताया कि श्री प्रभु जी हमेशा यही कहते थे कि मानव सेवा में ही परमात्मा का वास होता है और यह परम्परा हमेशा चलती रहनी चाहिए। और इस तपस्वी बाबा मठ में सदियों से सेवा चल रही थी और आज भी उनके शिष्यों द्वारा गौ सेवा एवं संत सेवा, मानव सेवा निरंतर चल रही है।

    मौके पर अध्यक्षता करते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रभु राम जी ग्राम-खिरौना, पोस्ट-रहुई, जिला-नालन्दा के निवासी थे। ये स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय भागीदारी दिए थे। आजादी के बाद वैष्णव संप्रदाय के फतेहपुर पटना मठ में रहते हुए प्रवचन दिया करते थे। आयुर्वेदाचार्य, जड़ी बूटियों के महान ज्ञाता संत प्रभु राम जी दूर-दूर से आये हुए रोगियों को फ्री में इलाज करते थे।

    ये अपने जीवन में हजारों भजन व गीत गाये व लिखे। उन्होंने कहा कि संत शिरोमणि प्रभु राम जी भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित कोसी नदी पर सन 1958 से 1962 के बीच एक बाँध बनाया गया था, जिसमें ये श्रमदान किये थे। कोशी बांध बांधने में इनके कार्य कुशलता को देख कर इन्हें पुरस्कृत भी किया गया था। ये जीवनपर्यंत सरकारी लाभ लेने से इंकार किया। संत प्रभु राम जी वृद्धा पेंशन तक नहीं लिया। इनके दो पुत्र शिक्षक रामसागर राम एवं राम वृक्ष राम हैं, इनके पौत्र मशहूर गजलकार व कवि नवनीत कृष्ण एवं पुनीत हरे हैं।

    शंखनाद के वरीय सदस्य सरदार वीर सिंह ने कहा कि स्वर्गीय श्री प्रभु राम जी संत समाज व जीव सेवा को सदैव अपने कार्यों से प्रेरणा देने का कार्य करते रहे हैं। संतों के ही मार्गदर्शन में समाज आगे बढ़ रहा है। गुरु और शिष्य की परंपरा को सदैव संतों ने ही आगे बढ़ाया है। संतों के दर्शन मात्र से ही इस कलयुग में भवसागर पार किया जा सकता है।

    इस दौरान साहित्यकार इंजीनियर डॉ. आनंद वर्द्धन, शिक्षाविद् राज हंस जी, राजदेव पासवान, घनश्याम कुमार, जितेंद्र कुमार, तंग अय्यूबी, राजीव कुमार, समर वारिस, पुनीत हरे, गोल्डेन कुमार, संजीव कुमार, राधिका कुमारी, माला देवी सहित जिले के कई साहित्यकारों, कवियों व समाजसेवियों ने भाग लिया।

  • आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हर घर तिरंगा अभियान

    आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हर घर तिरंगा अभियान को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री रितुराज सिन्हा नालंदा जिले के भागन बीघा इलाके में पहुंचे। जहां से उन्होंने 13-15 अगस्त तक चलने वाले हर घर तिरंगा यात्रा का शुभारंभ किया।
    इस मौके पर उन्होंने कहा कि यह हर भारतवासियों के लिए गर्व का अवसर है कि हमारा देश आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है।

    अगर हर भारतवासी अपने घरों पर झंडा फहराएँगे तो तो सही मायने में भारत का गौरव बढ़ेगा। वहीं राष्ट्रीय मंत्री ऋतुराज सिन्हा ने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दी और कहा तेजश्वी यादव ने खुद कही कहा है कि मैं डिप्टी सीएम हुआ हूं सीएम नहीं बना हूं।

    आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हर घर तिरंगा अभियान  आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हर घर तिरंगा अभियान

    उन्होंने कहा कि अगर आप डिप्टी सीएम बने हैं तो 10 लाख तो नहीं कम से कम आधा वादा तो पूरा कीजिए साढे 4 लाख पद जो सरकारी रिक्त हैं। जो खुद आप बार-बार यह कह कर याद दिला रहे हैं। आप से बिहार की युवाओं को आशा है कि आप अपने पहले कैबिनेट की बैठक में है इन साढ़े चार लाख पदों की नियुक्ति करवाने का काम करेंगे। तब जाकर बिहार की युवा मानेगा कि सही मायने में युवा हमारा डिप्टी सीएम हुआ है।

  • बहुजन विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया।

    बिहारशरीफ के नाला रोड स्थित सामुदायिक भवन में बहुजन सेना द्वारा बहुजन विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया। आज के इस विचारगोष्ठी में नालंदा जिला के सैकड़ों लोगों ने भाग लिया।इस अवसर पर बहुजन सेना के रामदेव चौधरी ने कहा कि आज हम आजादी के अमृत महोत्सव मना रहे हैं,

    लेकिन सच्चाई यह है कि आजादी के 75 साल बाद भी हम बहुजनों (एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यकों) की स्थिति गुलामों जैसी ही बनी हुई है। आज भी देश के सत्ता एवं संस्थानों पर सिर्फ एक वर्ग का ही एकाधिकार बना हुआ है, खासतौर पर न्यायपालिका में कॉलरीजम सिस्टम बने रहने के कारण जजों की नियूक्ति में सिर्फ एक वर्ग का ही बोल वाला बना हुआ है जो कि सरासर गलत है।

    इस अवसर पर अनिल पासवान ने कहा कि हमारी आबादी 85% परसेंट होने के बावजूद भी हम शासक नहीं बल्कि शोषक बनकर जिंदगी जी रहे हैं। वर्तमान समय में देश के सत्ता पर आसीन सरकार तो और भी हम लोगों की जिंदगी में तबाही लाने के लिए अग्रसर है।जब हमलोग पढ़ने-लिखने लगे तो सरकारी शिक्षण संस्थानों को बर्बाद कर दिया और जब हमें कुछ नौकरिया लगने लगी तो सरकारी संस्थानों को निजीकरण कर रही है ताकि हमलोग नौकरी से वंचित हो जाएं
    आज के इस विचारगोस्ठी में कल्याण कुमार उर्फ कल्याण जी अधिवक्ता अनिल क्रांति अधिवक्ता अमोद कुमार, समाजसेवी मोहम्मद जाहिद अंसारी रविशंकर दास, ऋषिराज कुमार, मो. असगर भारती, दीपक कुमार, अखिलेश कुमार, अनिल कुमार,, मो. चांद आलम, नगीना पासवान, सुबोध पंडित, मोहन चौधरी, शफीक बिहारी राईन, देवेन्द्र रविदास, बाल्मीकिटन कुमार, महेन्द्र प्रसाद, अजय कुमार, एकलब्य बौद्ध इत्यादि

  • रोटरी क्लब तथागत के द्वारा तिरंगा यात्रा एवं प्रभात फेरी का आयोजन किया

    आजादी का अमृत महोत्सव पर रोटरी क्लब तथागत के द्वारा तिरंगा यात्रा एवं प्रभात फेरी का आयोजन किया गया। रविवार सुबह को क्लब के द्वारा आईएमए भवन से भरावपर होते हुए पुलपर, कुमार सिनेमा, धनेश्वरघाट, भैंसासुर से होते हुए पैदल तिरंगा मार्च का अंत आईएमए भवन में हुआ।

    तिरंगा यात्रा के दौरान पुरा शहर तिरंगा के रंग में रंगा हुआ प्रतीत हो रहा था। बैंड, बाजे और ढोल नगाड़े के संगीत और साथ में भारत माता की जय, वंदे मातरम के नारों से मानो लग रहा था शहर के लोग आज़ादी के इस महाउत्सव में लीन हो गए हों।

    हाथ में तिरंगा, सर पर तिरंगा टोपी, अमृत महोत्सव छपा हुआ टीशर्ट और दिल में देश के प्रति जोश और जुनून ने पूरे शहर में यह संदेश देने का काम किया की राष्ट्र के इस उत्सव में सभी की हिस्सेदारी होनी चाहिए। तिरंगा यात्रा का मुख्य आकर्षण था रथ पर बैठी भारत माता एवं साथ में ब्रह्म कुमारी दीदी और साथ में चल रहे घुड़सवार जिसने देख रहे आम लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया।

    तिरंगा यात्रा में रोटरी तथागत परिवार के सदस्यों के साथ इनर व्हील क्लब के सदस्य, रोटरेक्ट क्लब, इंटरेक्ट क्लब, एम डब्लू टीम, बुद्धा ट्रेनिंग सेंटर, लायंस क्लब के सदस्य एवं प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के दीदियों एवं भाइयों ने भाग लिया।

    विदित हो की रोटरी तथागत ने आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर विभिन्न प्रतियोगीताओं का आयोजन किया जिसमें प्रमुख रूप से रोटरी चिल्ड्रेन के द्वारा राष्ट्रगान प्रतियोगिता, बच्चों के द्वारा चित्रकला प्रतियोगिता, रोटरी सहेली सेंटर के छात्राओं व महिलाओं के द्वारा मेहंदी प्रतियोगिता, समाज में राष्ट्र कल्याण के लिए श्रम कल्याण केंद्र में सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए सामाजिक एकता अखंडता एवं संप्रभुता बनाए रखने के लिए शपथ ग्रहण समारोह के साथ वंदे मातरम गौरव गान कार्यक्रम किया गया।

    आज़ादी का अमृत महोत्सव का पुरा कार्यक्रम परियोजना निदेशक रो. डॉ. नीरज कुमार के निर्देशन में सफलता पूर्वक किया गया। इस बारे में बताते हुए तथागत के अध्यक्ष रो. अनिल कुमार ने कहा की जिस तिरंगे को प्रतिक मानकर हमारा देश गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुआ, उस तिरंगे के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए इस यात्रा का आयोजन किया गया था।

    रोटरी तथागत के सचिव रो. परमेश्वर महतो ने कार्यक्रम की सफलता पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कार्यक्रम से जन समान्य में एक अच्छा सन्देश गया है। तिरंगा यात्रा के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए रो. डॉ. अरविंद कुमार सिन्हा ने कहा की इसी तरह देश और समाज को सशक्त करने लिए हम सभी मिलकर काम करते रहें।

  • बिहारशरीफ प्रखंड में युवा क्लब विकास कार्यक्रम का हुआ समापन।

    आज दिनांक 09 अगस्त 2022 को बिहारशरीफ प्रखंड में युवा क्लब विकास कार्यक्रम का हुआ समापन।
    विगत 4 अगस्त से 8 अगस्त के बीच नेहरू युवा केंद्र नालंदा केजिला युवा अधिकारी सुश्री पिंकी गिरि के निर्देशानुसार युवा क्लब विकास कार्यक्रम और हर घर तिरंगा कार्यक्रम का आज समापन किया गया।

    जिसमें राष्ट्रीय युवा स्वयंसेवक पिंटू कुमार और सोनी कुमारी के नेतृत्व चल रहे कार्यक्रम में लगभग पचास क्लब को नवीनीकरण करके उनको नेहरू युवा केंद्र संगठन के नीति और सिद्धांतों को विस्तार पूर्वक बताया और समझाया गया, और युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा चलाए जा रहे हैं

    युवा कल्याणकारी योजनाओं को लोगों के बीच कैसे पहुंचे इस बात पर भी चर्चा हुआ। और लोगों को अपने अपने घरों में झंडा लगाने को प्रेरित करने को कहा गया । क्लब के के सभी सदस्यों को नेहरू युवा केंद्र संगठन, नालंदा, बिहार, और इंडिया के फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम, इत्यादि सभी सोशल साइट पर लिंक के माध्यम फॉलो कर जोड़ा गया और सभी सदस्यों को निर्देश दिया गया कि वह अधिक से अधिक लोगों को इस सोशल साइट से जोड़ने का कोशिश करें।

  • महिलाओं और लड़कियों के बीच मेहंदी लगाओ प्रतियोगिता रखी गई

    आज़ादी के अमृत महोत्सव से कोई अछूता न रह जाए और और समाज के हर कोई राष्ट्र के प्रति अपनी भावना व्यक्त करने के उद्देश्य से आज रोटरी क्लब तथागत के द्वारा संचालित रोटरी तथागत सहेली सेन्टर में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही महिलाओं और लड़कियों के बीच मेहंदी लगाओ प्रतियोगिता रखी गई जिसका थीम ही अमृत महोत्सव था । प्रशिक्षण केन्द्र के 20 प्रशिनार्थियो ने गालो पे तिरँगा बना इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और दिए गए थीम पर राष्ट्र के प्रति अपनी भावनाओं को मेहंदी से हाथों पे उकेरा ।

    ज्ञातव्य हैं कि रोटरी तथागत के द्वारा संचालित रोटरी तथागत सहेली सेन्टर में लड़कियों और महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के उद्देश्य से न्यूनतम शुल्क में कंप्यूटर, सिलाई – कढ़ाई ,और सौंदर्य की प्रशिक्षण दी जाती हैं । 2015 से चल रहे इस संस्थान अभी तक सैकड़ो महिलाय प्रशिक्षण प्राप्त कर स्व-रोजगार या किसी संस्थान में कार्य कर रही हैं ।
    रोटरी तथागत ने पूरे जोश से आज़ादी की 75 वे साल के लिए मनाए जा रहे अमृत महोत्सव को बड़े धूम धाम से मनाने की ओर अग्रसर है इसकड़ी में आज के इस कार्यक्रम को रखा गया ।

    इस कार्यक्रम के परियोजना निदेसक रो0 सुंनीता रस्तोगी ने सभी प्रतिभागियो को आज़ादी की 75 वे साल की शुभकामना दी और इस प्रितियोगिता मे हिस्सा लेने के लिए आभार प्रकट किया । आज़ादी की अमृत महोत्सव को मनाने के लिए रोटरी तथागत की पूरी टीम कार्य कर रही है इस परियोजना के परियोजना निदेशक रो0 डॉ0 नीरज ने कहा कि रोटरी तथागत के द्वारा आज़ादी अमृत महोत्सव के मानने की लिए पूरे सप्ताह में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे ।

    आज के इस कार्यक्रम में सभी प्रतिभागियी ने पूरी तलीनता के साथ राष्ट्र के प्रति अपनी भावनाओं को खूबसूरती के साथ अंजाम दिया । इस प्रतियोगिता में शाज़िया मुमताज़ को प्रथम दिवांशी प्रिया को दूसरा और सिंम्पी कुमारी को तृतीय पुरस्कार प्राप्त किया ।

    इसके अलावा रूबी कुमारी और लाडली कुमारी को प्रोत्साहन पुरस्कार दिया गया। रो0 ममता कौशम्भी ,रो0 इंदु वर्मा ,रो0 सुधा गुप्ता, रो0 सजना जोसफ ,रो0 सुनीता राज ने सभीप्रतिभागियों को पुरस्कृत किया । इस अवसर पे रोटरी तथागत के अध्यक्ष रो0 अनिल कुमार ,सचिब रो0 परमेश्वर महतो, रो0 डॉ0 नीरज, रो0 हर्षित जैन रो0 आशीष रस्तोगी , रो0 विश्वप्रकाश के अलावा रोटरी सहेली सेन्टर के अनिता वर्मा, शाज़िया नवाब ,प्रति कुमारी उपस्थित थी । आये हुए सभी का धन्यवाद रो0 अमीत भारती के द्वारा किया गया ।

  • राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की 136 वीं जयंती पर विशेष

    राकेश बिहारी शर्मा – हिन्दी साहित्य में गद्य को चरम तक पहुचाने में जहां प्रेमचंद्र का विशेष योगदान माना जाता है वहीं पद्य और कविता में राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त को सबसे आगे माना जाता है। अपनी कविताओं से मैथिलीशरण गुप्त ने कविता के क्षेत्र में अतुल्य सहयोग दिया है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में मैथिलीशरण गुप्त खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की 3 अगस्त को जयंती है। उनकी कृति भारत-भारती भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की पदवी भी दी थी। उनकी जयंती 3 अगस्त को हर वर्ष ‘कवि दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

    मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय और शिक्षा

    हिन्दी साहित्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्रों में से एक राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झांसी के एक भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण काव्यानुरागी एवं एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में 3 अगस्त 1886 को पिता सेठ रामचरण गुप्त और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ था। माता और पिता दोनों ही वैष्णव थे। इनके पिता हिन्दी के अच्छे कवि थे। पिता से ही इनको कविता लिखने की प्रेरणा मिली।
    इन्हें काव्य रचना का संस्कार विरासत में मिला। इनके पिता सेठ रामचरण गुप्त जी कनकलता, स्वर्णलता और हेमलता आदि उपनामों से कविता लिखते थे। ‘रहस्य रामायण’ और ‘सीताराम दम्पत्ति’ इनकी प्रमुख रचनाएं हैं। मैथिलीशरण गुप्त को पिता से ‘रामभक्ति’ और अंग्रेजों के प्रति नफरत का संस्कार मिला। विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गई। घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। 12 वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कनकलता नाम से कविता रचना आरंभ किया।
    हिंदी साहित्य के प्रखर नक्षत्र, माँ भारती के वरद पुत्र मैथिलीशरण गुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा चिरगांव, झांसी के राजकीय विद्यालय में हुई। प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के उपरान्त गुप्त जी झांसी के मेकडॉनल हाईस्कूल में अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए भेजे गए, पर वहां इनका मन न लगा और दो वर्ष बाद ही घर पर इनकी शिक्षा का प्रबंध किया, लेकिन पढ़ने की अपेक्षा इन्हें चकई फिराना और पतंग उड़ाना अधिक पसंद था। फिर भी इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिन्दी तथा बांग्ला साहित्य का व्यापक अध्ययन किया। इन्हें ‘आल्हा’ पढ़ने में भी बहुत आनंद आता था।

    मैथिलीशरण गुप्त का राजनैतिक सफर

    वह ऐसे कवि थे, जिनकी कविताओं से हर निराश मन को प्ररेणा मिल जाती थी. कविता की दुनिया के सरताज मैथलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि के नाम से भी जाना जाता है। 16 अप्रैल 1941 को वे व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिए गए। पहले उन्हें झांसी और फिर आगरा जेल ले जाया गया। आरोप सिद्ध न होने के कारण उन्हें सात महीने बाद छोड़ दिया गया। सन 1948 में आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी.लिट. की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1952-1964 तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए। सन 1953 ई. में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने सन 1962 ई. में अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया और हिंदू विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किया गया। वह वहां मानद प्रोफेसर के रूप में नियुक्त भी हुए थे। 1954 में साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। चिरगांव में उन्होंने 1911 में साहित्य सदन नाम से स्वयं की प्रेस शुरू की और झांसी में 1954-55 में मानस-मुद्रण की स्थापना की।

    मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ

    मैथिलीशरण गुप्त जी के काव्य में राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता है। इसमें भारत के गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता का ओजपूर्ण प्रतिपादन है। आपने अपने काव्य में पारिवारिक जीवन को भी यथोचित महत्ता प्रदान की है और नारी मात्र को विशेष महत्व प्रदान किया है। मैथिलीशरण स्वभाव से ही लोकसंग्रही कवि थे और अपने युग की समस्याओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील रहे। उनका काव्य एक ओर वैष्णव भावना से परिपूर्ण था, तो साथ ही जागरण व सुधार युग की राष्ट्रीय नैतिक चेतना से अनुप्राणित भी था। लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल, गणेश शंकर विद्यार्थी और मदनमोहन मालवीय उनके आदर्श रहे। अपने कवि जीवन में गुप्त ने कई विशिष्ट काव्य रचनाएं की. “साकेत” आधुनिक युग का एक अति प्रसिद्ध महाकाव्य है।
    गुप्त जी कबीर दास के भक्त थे। पं महावीर प्रसाद दद्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया। मैथिलीशरण गुप्त की कविताओं से हर निराश मन को एक प्रेरणा मिल जाती थी. हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में ‘दद्दा’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। उन्होंने लगभग 40 ग्रंथ रचे तथा खड़ी बोली को सरल प्रवाहमय और सशक्त बनाया। इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं-
    महाकाव्य :- साकेत, यशोधरा। खण्डकाव्य :- जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, युद्ध, झंकार, पृथ्वीपुत्र, वक संहार, शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला, प्रदक्षिणा, दिवोदास, भूमि-भाग।
    नाटक :- रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा, हिन्दू, चंद्रहास लिखे ।

    मैथिलीशरण गुप्त की भक्ति भावना

    गुप्त जी परम वैष्णव थे। राम के अनन्य होते हुए भी वे सब धर्मों तथा सम्प्रदायों के प्रति आदर भाव रखते है। तुलसी के बाद रामभकत कवियों में इन्हीं का स्थान है। सभी अवतारों में विश्वास तथा श्रद्धा रखते हुए भी भगवान्‌ का रामरूप ही उन्हें अधिक प्रिय रहा है। भक्ति के साथ दैन्य-भाव भी इनके काव्य में पाया जाता है। तुलसी जैसी रामभक्ति की अनन्यता गुप्त जी के काव्य में देखी जा सकती है।

    मैथिलीशरण गुप्त की भारतीय सभ्यता,संस्कृति व नारी सम्मान

    मैथिलीशरण गुप्त जी भारतीय सभ्यता व संस्कृति के परमभक्त थे, लेकिन वे अन्धभक्त नहीं थे और साथ ही अन्य धर्मों के प्रति वे न केवल सहिष्णु और उदार थे, बल्कि उनके गुण ग्रहण करने में भी वे संकोच नहीं करते थे। भारतीय संस्कृति में नारी का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा सम्मानप्रदक स्थान रहा है और गुप्तजी ने नारी के अनेक व विविध प्रकार के चरित्र अपने काव्यों में उपस्थित किए हैं। हम कह सकते हैं कि नारी के इतने अधिक तथा विभिन्नतापूर्ण चरित्र किसी अन्य हिन्दी कवि ने प्रस्तुत नहीं किये। सीता, उर्मिला, यशोधरा, विष्णुप्रिया आदि उनके नारी पात्र इतने महान हैं कि उनकी तुलना में किसी भी अन्य कवि के पात्रों को नहीं रखा जा सकता। अबला जीवन से गुप्तजी को गहरी सहानुभूति है। उसे उन्होंने ने इस प्रकार व्यक्त किया है-

    अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी।
    आंचल में है दूध और आंखों में पानी ।।

    अंतिम दिनों में मैथिलीशरण गुप्त जी कुछ अस्वस्थ भी रहने लगे थे, लेकिन वे अपने साहित्य-कर्म से कभी विमुख न हुए। इस प्रकार कर्ममय जीवन व्यतीत करते हुए 12 दिसंबर, 1964 को चिरगांव में ही राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का देहावसान हो गया। हिंदी साहित्य ने अपने एक महान साहित्यकार को खो दिया। परन्तु गुप्त जी अपनी बेमिसाल रचनाओं के माध्यम से आज भी हम साहित्य-प्रेमियों के दिलों में अमरत्व को प्राप्त किये हुए हैं।
    आज जब हम भारत को पुनः ‘विश्वगुरु’ तथा ‘सोने की चिड़िया’ के रूप में देखने के लिये प्रयत्नशील है, तब गुप्तजी के अवदान हमारी शक्ति बन रहे हैं। यही कारण है कि अनेक संकटों एवं हमलों के बावजूद हम आगे बढ़ रहे हैं। ‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’-आज भारत की ज्ञान-संपदा नई तकनीक के क्षेत्र में वैश्विक-स्पर्धा का विषय है। लड़खड़ाते वैश्विक आर्थिक संकट में भारत की स्थिति बेहतर है। नयी सदी के इस परिदृश्य में, नयी पीढ़ी को देश के नवनिर्माण के सापेक्ष अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी है। जब तक नैराश्य से निकलकर आशा और उल्लास की किरण देखने का मन है, आतंकवाद के मुकाबले के लिए निर्भय होकर अडिग मार्ग चुनना है, कृषकों-श्रमिकों सहित सर्वसमाज के समन्वय से देश को वैभव के शिखर पर प्रतिष्ठित करने का स्वप्न है, तब तक गुप्तजी का साहित्य प्रासंगिक है और रहेगा।